आधुनिक कहानी में चित्रित आर्थिक संघर्ष

Pages:94-95
वर्षा देवी (1680/4, राजेन्द्र सेठ कालोनी, कैथल)

स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् ही आम व्यक्ति को आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ा। भारत-चीन युद्ध, मुद्रा स्फीति, मुद्रा का अवमूल्यन, जनसंख्या वृद्धि, केन्द्रीय शक्ति की दुर्बलता, राजनीतिक अस्थिरता, चारों ओर व्याप्त भ्रष्टाचार, नौकरशाही की आकर्मण्यता व सत्ता-प्राप्ति के बाद के घोटाले, षड्यंत्र ने मंहगाई को बढ़ावा दिया। आर्थिक अभावों को झेलता हुआ व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में निरन्तर संघर्ष कर रहा है। आज के जीवन की सबसे बड़ी विडम्बना है- बढ़ती मंहगाई। इस मंहगाई के कारण व्यक्ति आर्थिक विवशताओं के बीच पिसता जा रहा है और उसका सारा जीवन इससे जूझते हुए व्यतीत होता जा रहा है फिर भी जीवन को भौतिक सुख से मंडित करने की उसकी अदम्य इच्छा पूरी नहीं हो पाती। निर्मला सिंह की ‘सड़क की मिट्टी’ कहानी का छंगा बढ़ती हुई मंहगाई में अपने परिवार के जीवन यापन के लिए घर से दूर शहर में कमाने के लिए आता है। यद्यपि उसके भीतर गाँव के प्रति स्नेह है और साथ ही उससे दूर रहने का दुख भी- ‘‘क्या बताऊँ- बाबूजी! कौन चाहता है अपना देश छोड़ना? मजबूरी में छोड़ना पड़ता है- पेट के खातिर। आज भी मेरी साँस में गाँव की सौंधी-सौंधी मिट्टी की खुशबू बसी है। हर वक्त कमली और बिटिया मेरी आँखों के आगे घूमती रहती हैं।’’1 अर्थतंत्र के शिकंजे में जकड़ा छंगा अपने रहने के लिए झोपड़ी या मकान नहीं खरीदता क्योंकि ‘‘उसके लिए भी रुपया चाहिए। बाबूजी, मैं अगर सारा कमाया धन अपने ऊपर खर्च कर दूंगा, तो घर क्या भेजूंगा? मंहगाई तो ताबड़तोड़ है। बड़ी कंजूसी से खर्च करता हूँं। तब जाकर अपनी कमली और बिटिया के लिए कुछ धन बचाता हूँ।’’2

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वर्षा देवी (1680/4, राजेन्द्र सेठ कालोनी, कैथल)