प्रजामंडल आंदोलनः रियासतों के विरूद्वजन आंदोलन
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Pages: 2099-2101
बीरबल (इतिहास विभाग, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक, हरियाणा)
प्रजामंडल आंदोलन शेष भारत के अनुरूप हरियाणा में भी अंगे्रजों का निंरकुश राजतन्त्र तथा अत्याचारी सामन्तों के प्रति घोर असंतोष व्याप्त था। जनता में असंतोष की भावना व्याप्त थी। उनके असंतोष को मूर्तरूप देने के लिए संगठन की आवश्यकता थी। परन्तु दूसरी ओर, राजस्थान में 20 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में संगठनों तथा संस्थाओं का निर्माण होने लग गया था। 1919 ई. में राजस्थान सेवा संघ के स्थापित हो जाने से जनता की अभिव्यक्ति के लिए सशक्त माध्यम मिल गया था। 1920 से 1929 तक राजस्थान में होने वाले कृषक आंदोलन का नेतृत्व इसी संघ के द्वारा किया गया था। 1919 ई. में ही अन्य महत्वपूर्ण संगठनों का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। परन्तु हरियाणा में विभिन्न राज्यों में ऐसे संगठनों का अभाव था। इतना ही नहीं, अखिल भारतीय कांग्रेस भी रियासतों के मामलों में उदासीन हो रही थी। जनता में अखिल भारतीय काग्रेंस की कोई अधिक दिलचस्पी नहीं थी। आगे चलकर हरिपुरा कांग्रेस में इसकी स्थिति में कुछ परिवर्तन हुआ। 1938 ई. के अधिवेशन में रियासती जनता को भी अपने अपने राज्य में संगठन निर्माण करना तथा अपने अधिकारों को प्राप्त करने की छूट दे दी। जिससे जनता में नई चेतना का जन्म हुआ।
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बीरबल (इतिहास विभाग, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक, हरियाणा)