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आर्य समाज व महिला शिक्षा

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Pages: 1494-1498
सुशमा रानी (विभाग इतिहास, ओ.पी.जे.एस. विश्वविद्यालय, चुरू, राजस्थान)

आर्य समाज की स्थापना के समय स्त्री शिक्षा की दशा अत्यन्त शोचनीय थी। 19वीं शताब्दी में यदि लड़कियों की शिक्षा की कुछ व्यवस्था भी कि गई तो वो बगांल क्षेत्र तक ही सीमित थी, जो कि ईश्वर चन्द्र विद्यासागर जैसे महानपुरूषों के परिश्रम का परिणाम थी। इन परिस्थितियों का आंकलन स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने सही मायने में किया। हरियाणा क्षेत्र में उनका कई बार आना हुआ। इस वजह से वो यह तो जान ही चुके थे कि यहां के लोगों को मात्र उचित मार्गदर्शन कि जरूरत है और हुआ भी ऐसा ही। यहां के लोगों ने शीघ्र ही स्वामी जी के नियमों को अपने जीवन में उतार लिया। जिसके कारण यहां रूढ़िवादिता व आडम्बरों की बेड़िया टूटने लगी थी। ये लोग शिक्षा के महत्व को समझने लगे थे। स्त्री शिक्षा को ध्यान में रखते हुए हरियाणा के आर्य समाजियों ने कन्या गुरूकुल पर विचार करना शुरू किया। आर्य समाज से जुडे़ लोग स्वामी जी के उन सभी विचारों का अनुकरण कर रहे थे जिसमें स्वामी दयानन्द ने स्त्रियों के लिए ‘सर्वतोमुखी शिक्षा’ की योजना बनाकर उनकी शिक्षा का समर्थन किया था। स्वामी जी ने महिलाओं को ‘सभी प्रकार की विद्या पढ़ने की अधिकारिणी’ बताया। उन्होंने स्त्रियों के लिए ‘अलग गुरूकुलों’ की व्यवस्था का नियम दिया था। हरियाणा प्रदेश में हिसार आर्य समाज के स्त्री शिक्षा क्षेत्र के लिए किए गए कार्य प्रशसनीय रहे। भक्त फूल सिंह ने शिक्षा के प्रसार के लिए जिस गुरूकुल की नींव रखी उसके लिए उन्होंने अपना तन, मन, धन सब न्यौछावर कर दिया था। आर्य समाज द्वारा गुरूकुलों की स्थापना की दृष्टि से हरियाणा क्षेत्र में काफी कार्य किए गए। गुरूकुल शिक्षा हरियाणावासियों के अनुकूल भी थी।

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Pages: 1494-1498
सुशमा रानी (विभाग इतिहास, ओ.पी.जे.एस. विश्वविद्यालय, चुरू, राजस्थान)