डाॅ0 महाश्वेता चतुर्वेदी के साहित्य में शिल्प व उसका स्वरूप
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Pages:210-212
सुशीला (हिन्दी विभाग, भिवानी, हरियाणा)
शिल्प (शैली) रचना के आरम्भ से अन्त तक कुछ विशेष तत्त्वों के माध्यम से आकार ग्रहण करता है। शिल्प से हमारा अभिप्राय है रचना अथवा बनाना या बनाने का तरीका। जिस प्रकार एक शिल्पकार अपने चित्र से सभी दोषांे का निवारण कर उसमंे सभी अच्छे भावों को तूलिका के माध्यम से प्रस्तुत करता है। उसी प्रकार एक रचनाकार भी अभिव्यक्ति कौशल से अपनी रचना को सुदृढ़ बनाता है। भाव कितने भी अच्छे हों, जब तक अभिव्यक्ति पक्ष मजबूत नहीं होगा, भावों को ठीक ढंग से सम्प्रेषित नहीं किया जा सकता। अतः भावों के साथ अभिव्यक्ति भी सही होनी चाहिए। हम यहाँ तक कह सकते हैं कि रचना निर्माण की पद्धति ही शिल्प है। संस्कृत हिन्दी शब्द कोश के अनुसार शिल्पम् शब्द का अर्थ- ‘‘ शिल $ पकऋ कला, ललित कला, यांत्रिक कला (इस प्रकार की चैंसठ कलाएँ गिनाई गई हैं) किसी भी कला में, कुशलता, कारीगरी, विदग्धता पटुता कार्य शारीरिक श्रम या कार्य, कृत्य अनुष्ठान।’’1 बृहत हिन्दी शब्द कोश के अनुसार शिल्प शब्द का अर्थ- हुनर, कारीगरी, दक्षता, टेकनीक, शैली से ज्यादा व्यापक, वह उपादान जिसके द्वारा रचनाकार अपनी भावनाओं को किसी विशेष ढंग से ही व्यक्त कर पाता है। हस्त कर्म रूप, आकृति, निर्माण, सृष्टि, धार्मिक कृत्य अनुष्ठान। (कर) शिल्पकार (कला) दस्तकारी का कौशल, हुनर की दक्षता।’’2
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सुशीला (हिन्दी विभाग, भिवानी, हरियाणा)