भूमंडलीकृत यथार्थवादी हिन्दी सिनेमा में पुरुष-विमर्श

Pages:24-26

प्रवेश कुमार (शोधार्थी, हिन्दी-विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़)

हमारे समाज में, जहाँ सभी प्रचलित विमर्शों मंे स्त्री-विमर्श सर्वाधिक सक्रिय विमर्श के रूप में उभर कर सम्मुख आया है, वहाँ पुरुष-विमर्श की बात करना प्रथम दृष्टि से हास्यास्पद प्रतीत होता है। कुछ विद्वान इसे स्त्री-विमर्श के प्रतिवाद के रूप में देखते हैं और नारी-सशक्तिकरण का विरोधी मानते हैं। परन्तु इस सत्य को नहीं नकारा जा सकता कि हमारे सृजनात्मक एवं आलोचनात्मक साहित्य, मीडिया और सिनेमा आदि जनसंचार के माध्यमों में पिछले कुछ वर्षों से पुरुष-विमर्श की एक क्षीण-सी धारा प्रवाहित हो रही है। भूमंडलीकृत यथार्थवादी हिन्दी सिनेमा ने भी जहाँ स्त्री-विमर्श को समर्थन दिया है, वहीं पुरुष-विमर्श को गति देने में भी अपनी भुमिका निभाई है। भूमंडलीकृत यथार्थवादी हिन्दी सिनेमा में पुरुष-विमर्श को समझने से पूर्व पुरुष-विमर्श के औचित्य पर विचार करना समीचीन होगा।

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प्रवेश कुमार (शोधार्थी, हिन्दी-विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़)