समाज दार्शनिक दयानन्द सरस्वतीः एक अवलोकन
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Pages:5-8
Manju Devi (Research Scholar, Dakshin Bharat Hindi Prachar Sabha, Dharwar)
भारत प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों का देश रहा है। भगवान ने अनेक बार स्वयं अवतार लेकर इस भूमि को पवित्र किया है। राम, कृष्ण, पुष, महावीर, राजा राम मोहन राय, आदि के रूप में इस धरती का परम कल्याण रहा है। अनेक महान आध्यात्मिक गुरू तथा उच्च कोटि के संत और समाज सुधारक इस देश में हुए। एक सच्चा दार्शनिक वही कहलाता है जो ज्ञानी होता है और यह ज्ञान शिक्षा द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। व्यक्ति के व्यवहार को सुधार की दिशा में परिवर्तित करने वाले विचारों को शिक्षा कहा जाता है। कुछ विद्वानों ने समग्र जीवन को शिक्षा और शिक्षा को जीवन माना है। व्यक्ति जीवन में सद्विचारों को दर्शन द्वारा ही प्राप्त कर सकता है और दर्शन में जीवन जगत से संबंधित समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। स्वामी दयानन्द सरस्वती एक ऐसे ही संघर्षशील, समाज सुधारक, विचारक, असाधारण वाग्मी एवं संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। उन्होंने 19वीं शती में पौराणिक हिन्दू धर्म में व्याप्त जर्जर रूढ़ियों, सड़ी-गली मान्यताओं एवं मूर्तिपूजा आदि का खंडन किया और वैदिक धर्म की स्थापना की। ‘‘यदि स्वामी जी न होते तो भारत में आज हिन्दुओं का नामोनिशान भी नहीं होता। हां, अन्य प्रभारतीय धर्मों का प्रभुत्व उसी प्रकार हो जाता जिस प्रकार उत्तरी अफ्रीका से लेकर इंडोनेशिया तक पश्चिमी एशियाई धर्मों का प्रभुत्व है। वहाँ प्राचीन संस्कृतियाँ समूल नष्ट हो चुकी हैं।’’
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Pages:5-8
Manju Devi (Research Scholar, Dakshin Bharat Hindi Prachar Sabha, Dharwar)