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नारीः मध्य युगीन एवं आधुनिकता के मूल्यों के बीच

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Pages: 457-458
किरन कर्नाटक (मनोविज्ञान विभाग, पं. पूर्णानन्द तिवारी राजकीय महाविद्यालय चैखुटा, दोषापानी नैनीताल)

प्रस्तुत शोध पत्र एक आनुभाविक शोध पत्र है जिसमें लेखिका ने एक नारी होने के नाते अपने अनुभव को पूर्वकालीन नारियों के अनुभवों के साथ जोड़ने का प्रयास किया है तथा आज की नारियों के मूल्यों एवं व्यवहार की तुलना पूर्वकालीन नारी के मूल्यों एवं व्यवहार से की है। यह सच है कि पहले नारी के पास निश्चित मूल्य होते थे जिसके घेरे में नारी को बँधकर चलना एवं जीवन यापन करना पड़ता था उस समय नारी को उस घेरे से बाहर निकलने की न तो आजादी थी न कोई छूट। इतना ही नहीं स्वयं नारी भी उस घेरे से बाहर निकलने की सोच नहीं रखती थी। नियतिवाद के चक्रव्यूह में फँसी नारी स्वयं को उसी घेरे में सुरक्षित एवं महफूज भी महसूस करती थी। हालांकि परिस्थितियों में तथा पुरूषों की मानसिकता में कुछ विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है फिर भी विज्ञान एवं तकनीकी विकास, आधुनिकीकरण, शहरीकरण, संयुक्त परिवार का विघटन, एकल परिवार की स्थापना एवं नारी शिक्षा तथा नारी के कानूनी अधिकारों ने न केवल उसके बौद्धिक विकास को बल्कि उसकी चेतना, कर्तव्यपरायणता एवं उत्तरदायित्व बोध को संतुलित रूप दिया है। आज के नारी के कंधों पर पहले की नारी की तुलना से अधिक उत्तरदायित्व है क्योेंकि वह घर परिवार के उत्तरदायित्व के साथ कार्यक्षेत्र के दायित्वों का भी भली भाँति निर्वहन कर रही है। आज नारी पुरूषों के सहयोग (अधिकतर) एवं अपने बुद्धि कौशल के बल पर नये एवं पुराने मूल्यों को एकरूप कर संतुलित जीवन का निर्वहन कर रही है।

Description

Pages: 457-458
किरन कर्नाटक (मनोविज्ञान विभाग, पं. पूर्णानन्द तिवारी राजकीय महाविद्यालय चैखुटा, दोषापानी नैनीताल)