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प्राचीन साहित्य के वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था का विकास

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Pages: 71-73
Vikram Sharma (Faculty of Arts (Social Science & Humanities), Pacific University, Udaipur, Rajasthan)

इस युग में तीन प्रकार के सूत्रों की रचना की गई थी। श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र और धर्मसूत्र। ये तीनों सूत्र कल्पसूत्र के अन्तर्गत आते हैं। यह कल्पसूत्र उपनिषदों के पश्चात् ब्राह्मण साहित्य का एक बहुत बड़ा भाग है। सूत्र साहित्य की विशेषता है कम से कम शब्दों के द्वारा अधिक से अधिक बात कह देना। इसके अन्तर्गत व्यवस्थाकारों ने समाज के समस्त धार्मिक एवं सामाजिक विधि-निषेधों को छोटे-छोटे सूत्रों में संगठित कर रखा है। जिसमें श्रौतसूत्रों में याज्ञिक क्रियाओं और विधि-विधानों का महत्वपूर्ण उल्लेख है। तथा गृह्यसूत्रों और धर्मसूत्रों में सामाजिक और धार्मिक तथा राजनीतिक आचार-विचार एवं विभिन्न कत्र्तव्यों का वर्णन है। उत्तरवैदिक काल में चातुर्वण व्यवस्था का जन्म हुआ। तथा सूत्रकाल में वर्ण-व्यवस्था सुदृढ़ हो गयी। वर्णों के उद्गम में जन्म का आधार अधिक माना गया और कर्म का कम। वर्ण व्यवस्था की स्थिति में जन्म के साथ-साथ आनुवंशिकता का अधिक महत्व दिया गया है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्णों के कार्यों का उल्लेख दर्शाया गया है।

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Pages: 71-73
Vikram Sharma (Faculty of Arts (Social Science & Humanities), Pacific University, Udaipur, Rajasthan)