समाज में बढ़ते हुए अपराध का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण
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Pages: 388-393
कुमारी आरती (मनोविज्ञान विभाग, टी.एन.बी. महाविद्यालय, भागलपुर, बिहार)
अपराध एक प्रकार की सामाजिक विषमता है और यह व्यक्तिगत मानसिकता का परिणाम है । बचपन में प्रेम और
प्रोत्साहन के अभाव में उत्पन्न हीनता के भाव मानसिक ग्रंथियों के रूप में उभरकर अपराध का रूप धारण कर
लेती है। साथ ही आज के भौतिकवादी एवं आर्थिक युग में व्यक्ति का बहुत कम समय में भौतिक सुख सुविधाओं
को प्राप्त कर लेने की इच्छा है, जो उसे विचलित कर सामाजिक मानदंडों के विरुद्ध व्यवहार करने को प्रेरित
करती है और यही अपराधिक व्यवहार में परिणित हो जाती है। इसके पीछे बहुत सारे पारिवारिक, सामाजिक और
मनोवैज्ञानिक कारण के साथ-साथ आधुनिकीकरण औद्योगिकरण विज्ञान और सभ्यता का विकास तथा
प्रतियोगितावादी प्रवृत्ति भी है। नेशनल क्राइमरिकॉर्डब्यूरो के अनुसार अन्य देशों की अपेक्षा भारत में अपराध कम
होता है और साथ ही पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अपराधिक प्रवृत्ति कम पाई जाती है, किंतु आधुनिक समय में
प्रति मिनट की दर से पहले की अपेक्षा बढ़ती जा रही है। कारण भारत में नैतिकता तथा जीवन में मूल्यों को विशेष
स्थान प्राप्त होने से अपराध के प्रति कम संवेदनशीलता का होना है। अपराध शास्त्रियों ने इसके संबंध में विभिन्न
सिद्धांतों की जैसे क्लासिकल, शारीरिक रचना संबंधी, जैविक, भौगोलिक, आर्थिक सिद्धांतों की चर्चा की है ।
अपराधियों के स्वरूप के आधार पर इस के वर्गीकरण का भी प्रयास किया है। विभिन्न अध्ययनोंमें अपराध के
साथ-साथ अपराधियों के प्रवृत्तियों में भी भिन्नता पाई जाती है। अपराध की बढ़ती हुई दर आज पुलिस और
समाज के लिए ही नहीं बल्कि देश की अखंडता के समक्ष भी प्रश्न चिन्ह की तरह उभर रहा है। इसके लिए इसके
रोकथाम को देखते हुए विभिन्न प्रयासों को किए जाने की आवश्यकता है, जिसके लिए दण्डों की कठोरता को
बढ़ाने के साथ-साथ इसके मानसिक स्थिति में बदलाव और पुनर्वास की व्यवस्था सुनिश्चित करना आवश्यक है।
अध्ययनोंऔर विभिन्न प्रयासों को देखते हुए पाया गया कि अगर व्यक्ति के लिए संस्कार सम्यक शिक्षाजिसमें
आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा पर बल दिया जाए तथा कानून को आवश्यकतानुसार कठोर एवं
अनुपालन की प्रक्रियाको सरल एवं समयवध किया जाए तो अपराधिक प्रवृत्ति में कमी भी लाई जा सकती है और
सामाजिक एवं राष्ट्रीय नैतिकता के स्तर को भी और ऊंचा बनाया जा सकता है जिसके लिए प्रयास जारी है एवं
सहयोग की आवश्यकता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस प्रयास को हमें अपने ही परिवार से समाज और
राष्ट्र स्तर तक ले जाने की आवश्यकता है।
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Pages: 388-393
कुमारी आरती (मनोविज्ञान विभाग, टी.एन.बी. महाविद्यालय, भागलपुर, बिहार)